नवी मुंबई
गणेश नाईक से मिलने पहुंचे ठाणे से महायुती के उम्मीदवार नरेश म्हस्के को भाजपा के कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। इस दौरान सैकड़ों भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी के पदों से इस्तीफा देते हुए अपना विरोध जताया। उनका कहना था कि सजीव नाईक जैसा सक्षम उम्मीदवार होने के बावजूद नरेश म्हस्के को उम्मीदवार बनाना गलत है इसलिए हम महायुती के उम्मीदवार के लिए काम नहीं करेंगे।
नरेश म्हस्के का कैसे लगा नंबर (How Naresh Mhaske got ticket)
महायुती में समझौते के तहत ठाणे लोकसभा सीट एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के पाले में गई है। एकनाथ शिदे ने अपने सहयोगी और ठाणे के पूर्व महापौर नरेश म्हस्के को उम्मीदवार बनाया है। ठाणे में तो उनके नाम पर किसी भी तरह का कोई विरोध नहीं है और शिवसेना के अंदर भी उनके नाम पर कोई विरोध नहीं है। हालांकि गणेश नाईक के समर्थकों को लग रहा था कि ठाणे सीट भाजपा को मिलेगी तो संजीव नाईक को टिकट मिल जाएगा लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं जिसके चलते उनके समर्थकों ने यह हंगामा मचाया है।
क्या है इस सीट का गणित (What is the structure of the Thane Loksabha constituency)
ठाणे लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटें हैं जिसमें से चार पर भाजपा तो दो सीटों पर शिवसेना के विधायक हैं। कोपरी पचपखड़ी से खुद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ही विधायक हैं। ठाणे में करीब 24 लाख रजिस्टर्ड मतदाता हैं, हालांकि यहां का वोटिंग प्रतिशत काफी कम रहता है और इस बार पूरे देश के माहौल को देखते हुए वोटिंग प्रतिशत और भी कम होने की संभावना है। शिवसेना में टूट के कारण राजन विचारे की स्थिति कुछ कमजोर हो गई है लेकिन उनके प्रति एक सहानुभूति लहर नजर आ रही है। ऐसे में यदि राजन विचारे अपने लोगों को मतदान केंद्र तक लाने में सफल होते हैं तो इस सीट पर बाजी पलट सकत है। नरेश म्हस्के के लिए जिस तरह से गणेश नाईक के समर्थकों ने सहयोग करने से मना कर दिया है यह उनके लिए किसी झटके से कम नहीं है।
क्या है ठाणे लोकसभा सीट का इतिहास (What is the History of Thane Loksaha constituency)
शिवसेना की स्थापना के बाद से इस सीट पर सबसे ज्यादा समय तक उसके ही उम्मीदवार की जीत हुई है। 1989 और 1991 में इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार की जीत हुई थी। 1996 से 2008 तक शिवसेना के प्रकाश पराजपे यहां से सांसद रहे थे और उनकी मृत्यु के बाद 2008 में उनके बेटे आनंद परांजपे यहां से जीते थे लेकिन 2009 में जब चुनाव हुए तो शिवसेना ने अपना उम्मीदवार विजय चौगुले को बनाया था। उस चुनाव में पहली बार राष्ट्रवादी प पार्टी के संजीव नाईक लगभग 49 हजार मतों से विजयी हुए थे। 2014 और 2019 मे लगातार दो बार राजन विचारे ने इस सीट पर जीत हासिल की थी । इस तरह संजीव नाईक करीब तीन बार लोकसभा चुनाव लड़े हैं जिसमें से दो बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा था और एक बार जीत मिली थी।
गणेश नाईक के विरोध का कितना होगा असर (What will be the effect of this protest)
नरेश म्हस्के का विरोध करने वाले ज्यादातर लोग गणेश नाईक के समर्थक हैं ऐसे में यदि इन लोगों का विरोध जारी भी रहता है तो उसका कुछ खास असर होता हुआ नहीं दिखेगा क्योंकि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना भी नवी मुंबई में काफी मजबूत है। ऐरोली में विजय चौगुले तो वहीं बेलापुर में विजय नहाटा शिवसेना की कमान संभाल रहे हैं। बेलापुर से भाजपा विधायक मंदा म्हात्रे इस तरह का विरोध करेंगी उसकी कम ही संभावना है क्योंकि उनके एकनाथ शिंदे के अलावा शिवसेना के कई नेताओं से पहले से ही काफी मधुर संबंध हैं। इसलिए यह विरोध ऐरोली तक ही सीमित रह जाएगा। यदि यह विरोध जारी रहा तो नाईक के लिए आनेवाले विधानसभा चुनाव में नुकसानदायक साबित होगा । उस समय यदि विजय चौगुले के समर्थक उनका विरोध कर देंगे तो नाईक के लिए ऐरोली जीतना भी मुश्किल हो जाएगा।