मुझे गर्व है कि मैं उस देश से आया हूं, जिसने दुनिया के सताए गए अनेक धर्मों के लोगों को अपने देश में शरण दी। जब रोमन साम्राज्य के दौरान यहूदियों को सताया गया तो भारत में आकर उन्होंने शरण ली और आज स्वतंत्रतापूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं । ईरान में पारसियों को उनका देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया तो भारत ने उन्हें शरण दी।नागरिकता संशोधन कानून (CAA) कितनी हकीकत कितनी सियासतये पंक्तियां स्वामी विवेकानंद की हैं जिसे उन्होंने अमेरिका में दिए अपने ऐतिहासिक भाषण में उपयोग किया था।उनके उस भाषण की दुनिया में आज भी तारीफ की जाती है। स्वामी विवेकानंद ने जिस सहिष्णुता की दुनिया के सामने तारीफ की थी आज उसी सहिष्णुता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं क्योंकि भारत सरकार ने पड़ोसी देशों में सताए गए कई धर्मों के लोगों को भारत की नागरिकता देने का कानून बना दिया है। सरकार के इस कानून के तहत पाकिस्तान, बग्लादेश और अफगानिस्तान में सताए गए गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रवधान किया गया है।
क्या है नागरिका संशोधन कानून का इतिहास ( History of What is CAA )
साल 2014 में चुनाव लड़ने के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में कहा था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनियाभर के हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मैं कदम उठाऊंगा। अपने उसी वादे को पूरा करने के लिए 2016 में सरकार ने संसद में नागरिकता संशोधन कानून पेश किया था लेकिन उस वक्त राज्य सभा में उनके पास बहुमत नहीं था जिसके चलते सरकार उस कानून को पारित नहीं करवा पाई थी । उसके पश्चात दिसंबर 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोबार इस कानून को संसद में पेश किया और उसे पारित भी करवा लिया था । जिसके बाद देशभर में मुस्लिम समाज के लोग सड़कों पर उतर आए थे और उनकी मांग थी कि मुसलमानों को भी इस कानून में शामिल किया जाए । हालांकि लंबे समय तक देशभर के विभिन्न हिस्सों में चले आंदोलनों के बावजूद सरकार पीछे नहीं हटी थी और कुछ समय तक इसे लागू करने हेतु नोटिफिकेशन जारी नहीं किया था । मार्च 2020 में कोरोना की पहली लहर आने के कारण आंदोलनकारियों ने आंदोलन पीछे ले लिया था । तभी से ये कानून ठंडे बस्ते में पड़ा था और कोई इसपर चर्चा नहीं कर रहा था ।
किसे मिलेगी नागरिकता और सरकार का क्या है तर्क
इस कानून के तहर दिसंबर 2014 के पहले भारत में आकर बस चुके हिंदु, जैन, बुद्ध, सिक्ख, पारसी और ईसाई धर्मावल्मबियों को भारत की नागरिकाता दी जाएगी। साथ ही इस कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि आगे से इन देशों से आकर बसने अल्पसंख्यकों को पांच वर्ष बिताने के पश्चात ही भारत की नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगे। इसके पहले शरण लेने के 11 वर्ष बाद भारत की नागरिका के लिए आवेदन किया जा सकता था लेकिन अब सरकार ने इसे घटाकर पांच वर्ष कर दिया है। इस प्रावधान से कुछ ज्यादा फर्क पड़नेवाला नहीं है क्योंकि जिसने मन बना लिया है कि वह अब भारत में ही रहेगा फिर वह 5 वर्ष क्या 11 वर्ष भी इंतजार कर लेगा।
इस कानून का विरोध करने वालों का कहना है कि इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है इसलिए यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। जिसके जवाद में सरकार का कहना है कि इस कानून के तहत हम उन लोगों को नागरिकता देंगे जिन्हें इन देशों में धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया गाय है और वे लोग अपना देश छोड़ने के लिए मजबूर हुए हैं । चूंकि ये तीनों देशों का आधिकारिक धर्म इस्लाम है ऐसे में मुसलमानों को वहां पर धर्म के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है ।